एगो पौराणिक उपन्यास ‘तारक’

            सद्य प्रकाशित आदरणीय अग्रज ‘मार्कन्डेय शारदेय’ जी के पौराणिक उपन्यास सर्वभाषा प्रकाशन से भोजपुरी साहित्य जगत के सोझा आइल ह। ई कृति शारदेय जी के जीवंत लेखनी से प्रत्याभूत त बड़ले बा, संगही उहाँ के एह कृति के भोजपुरी के पुरोधा पाण्डेय कपिल जी के समर्पित कइले बानी।

जब कवनों पौराणिक कथा कहानी के उपन्यास विधा में पिरोवल जाला, त उ सोभाविक विस्तार लेत कबों यथार्थ के धरातल आ कबों काल्पनिक धरातल पर समभाव से आगु बढ़त देखाला। एह घरी के हिन्दू समाज के सभेले कमजोर नस मने ‘अपने धरम ग्रंथन के भाषा से दूरी’ के कम करे के परयास के रूप में एह उपन्यास ‘तारक’ के देखल जा सकेला। ई दुरूह काज आदरणीय मार्कन्डेय शारदेय जी जइसन संस्कृत के प्रकांड विद्वाने के बस के बात रहल ह, जवन ‘तारक’ का रूप में भोजपुरी साहित्य जगत के सोझा उपस्थित बाटे। ‘तारक’ के अपने माई भाषा भोजपुरी में परोस के शारदेय जी भोजपुरी लोक के ढेर जानल-अनजानल बातिन से परिचय करवले बाड़न। तारक उपन्यास के आमुख में उपन्यासकार उपन्यास के विशेषता बतावत कह रहल बाड़न-

सर्गश्च प्रतिसर्गश्च  वंशो मन्वन्तराणि च

वंशानुचरितं चैव पुराणम पंचलक्षणम्।

पुराणन के पाँच लक्षण के बहाने एह उपन्यास के आधारभूत बात कहल गइल बाटे। उपन्यासकार पुराणन के लोककथा मानिके अपने लोक भाषा में कई तथ्यन के कई जगह विवेचनो करत देखाई दे रहल बाड़न, जवन पढ़निहार लोग के बातिन के समुझे में ढेर सहायको बा। अलग-अलग ग्रंथन से कथारस के मनिया बिटोर के एगो सोगहग माला बनावल गइल बाटे, जवना के उपन्यासकार अपना आमुख में कहलहूँ बाड़न। एह  उपन्यास के लेके आ खासकर एकरा नाँव के लेके उपन्यासकार अपने तर्क के संगे उपस्थित होत नाम के सार्थक कइले बाड़न।

उपन्यास के कथानक महर्षि कश्यप के तीनों पत्नी जे सग बहिन रहे लोग,से शुरू हो रहल बा। अदिति, दिति आ दनु के आपुसी मनोभाव के फल देवता, दैत्य आ दानव का रूप में उपजल। एह सभे लोगन के बाबा ब्रह्मा के आशीष मिलल रहे आ बाबा ब्रह्मा एह लोगन के सोभाव का हिसाब से सभे के राज्य बाँट देले रहलें। अदिति पुत्र देवता लोगन के संगठन आदित्यवर्ग बनल आ उ लोग के स्वर्ग के राज मिलल। अदिति के बड़का बेटवा इंद्र दिति आ दनु के पुत्रन के अपना से हिगरा दिहलें।  एकर दरद दिति आ दनु के ढेर गहिराह तक लागल। इहवें से देवासुर संग्राम के नेंव डला गइल।

दिति के बेटवा वज्रांग जे इंद्र से कवनों ममिला में ओनइस ना रहल। अपना महतारी के कहला पर ऊ इंद्र के बान्ह के अपना माई का सोझा ले आइल। दिति वज्रांग के इंद्र के मारे के आदेशो दे देलीं बाकि बाबा ब्रह्मा जी आ पिता ऋषि कश्यप के हस्तक्षेप का चलते वज्रांग इंद्र के छोड़ देहलस। एह घटना के बाद वज्रांग तपस्या करे अपना पत्नी वरांगी के संगे ब्रह्मा बाबा आ पिता ऋषि कश्यप से आशीष लेके चल गइल। वज्रांग एगो कुटिया बना के ओहमें अपने सहधर्मिणी वरांगी के छोड़ि के तपस्या में लाग गइल। इंद्र बेर बेर ओह कुटिया में जासु आ वरांगी से छेड़-छाड़ करसु आ लोभ देके अपना पत्नी बनावे के कुचक्र करसु बाक़िर इंद्र के चाल सफल ना भइल।

वज्रांग के सफल तप से लउटला का बाद वरांगी अपना सभे दुख आ इंद्र के करतूत बतावत अपना पति से एगो बलवान पुत्र के माँग कइली। ब्रह्मा जी के बरदान से ओह लोगन के एगो ‘तारक’ नांव के बेटवा जनम लिहलस। लइकई के सागरी शिक्षा माई-बाबू से आ फेरु दैत्य गुरु शुक्राचार्य से सागरी विद्या सिखला का बाद  उनुके आदेश पर तपस्या करिके ब्रह्मा जी से वर का रूप में  शिव पुत्र के हाथ से अपना मृत्यु के वरदान पा गइल। फेरु दैत्य गुरु शुक्राचार्य के आदेश पर सगरे दैत्य – दानव एक होके तारकासुर के अगुवाई में स्वर्ग पर चढ़ाई कइलस, देवासुर संग्राम भइल आ देवता लोग हार गइलें । तारकासुर तीनों लोक के स्वामी बन गइल। तारकासुर के

अभ्युदय से लोक में नई घटनन के जनम भइल। शिव के अपना विरक्ति से बाहर आवे के परल। हिम राज के इहवाँ माता सती के जनम पार्वती का रूप में भइल। जवना घरी पार्वती के पालन -पोषण हिमराज के घरे होत रहे, ओह समय शिवजी गंगोत्री का लगे निवास करत रहलें। समय बीतत देर ना लागे । एक दिन उहो सुयोग बनल आ शिव पार्वती विवाह भइल। एकर बृतांत बहुते सधारन ढंग से एह उपन्यास में परोसल गइल बा। कार्तिकेय आ गणेश के जनम के जानल सुनल कथो एह उपन्यास के एगो रोचक प्रस्तुति बा।

अग्निदेव आ शिव से सभे ज्ञान आ युद्ध कला  से दीक्षित कार्तिकेय के ब्रह्मा जी देवता लोगन के सेनापति बना देलन। ओकरा बाद कार्तिकेय के बिआह मृत्यु के पुत्री सेना का संगे भइल। सेना अपना पति कार्तिकेय से युद्ध में सहधर्मिणी का रूप में रहे के अनुमति ले लेहनी। फेरु देव – असुर संग्राम भइल  आ सेनापति स्कन्ध (कार्तिकेय)के विजय भइल। असुर राज युद्ध में मरा गइल आ इंद्र के फिरो स्वर्ग के राज भेंटा गइल। उपन्यासकार  उपन्यास के प्रति नायक के जवना रूप में प्रस्तुत कइल चाहत रहले, ओहमें सफल भइल बाड़ें। एगो अइसन योद्धा जे युग के बदले क दम राखत होखे, बाक़िर महिमा मंडित करे जोग नइखे।

उपन्यास भाषाई कसौटी  पर खर माने जोग बाटे। भूलल -बिसरल शब्दन के परयोग क के ओहनी के फेरु जिनगी दियाइल बाटे।कतों कतों कथानक उबाऊ लगता तबो केहुओ के अंत तक ले बन्हले राखे में उपन्यासकार सफल भइल बाड़ें। कुल मिलाके कहल जाउ  त एगो दमगर कृति भोजपुरी साहित्य के माला में चमकदार मोती का रूप में गूँथा  गइल बा। प्रूफ संबंधी त्रुटि नाही के बरोबर बा। सर्वभाषा प्रकाशन आपन बेहतर देवे के भरपूर कोशिस कइले बा। एकरा संगही हम उपन्यासकार आदरणीय मार्कन्डेय शारदेय जी  आ प्रकाशन दूनों के शुभकामना आ बधाई का संगे अपना लेखनी के विराम दे रहल बानी।

 

पुस्तक का नाम- तारक

विधा- उपन्यास

उपन्यासकार- मार्कन्डेय शारदेय

मूल्य- रु 300.00

प्रकाशन – सर्वभाषा प्रकाशन , नई दिल्ली-59

 

  • जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

संपादक

भोजपुरी साहित्य सरिता

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